आम के आम और गुठलियों के दाम, धान की खेती संग करें मछली पालन और हो जाएं मालामाल

आम के आम और गुठलियों के दाम, धान की खेती संग करें मछली पालन और हो जाएं मालामाल

जी हां दोस्तों आप सभी ने ये कहावत तो जरूर सुनी होगी कि आम के आम और गुठलियों के भी दाम। मतलब चारों तरफ से मुनाफा ही मुनाफा। तो अगर आप खेती करते हैं तो आप इस कहावत को हकीकत में बदल सकते हैं। धान की खेती के साथ बिना किसी अतिरिक्त लागत और तामझाम के आप आसानी से मछली पालन कर सकते हैं। इस तरह की प्रक्रिया को फिश राइस फार्मिंग कहते हैं। आमतौर पर विदेशों में की जाने वाली इस तरह की फार्मिंग की तरफ अब भारतीयों का भी रूझान बढ़ा है।

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भारत के कई राज्यों में लोग फिश राइस फार्मिंग कर अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं। मुनाफे की वजह साफ है जहां एक तरफ उन्हें धान की फसल से आमदनी होती है तो वहीं दूसरी तरफ उसी फसल में तैयार मछलियों को बेचकर किसान अतिरिक्त मुनाफा कमाते हैं। ऐसे में अगर आप भी सोच रहें हैं कि फिश राइस फार्मिंग कैसे करें तो आज हम आपको इसके बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहें हैं।

जान लीजिए फिश राइस फार्मिंग के फायदे

  • मिट्टी की सेहत अच्छी रहती है।
  • फसल का उत्पादन बढ़ती है।
  • प्रति यूनिट एरिया पर कमाई अच्छी होती है।
  • उत्पादन में खर्च कम होता है।
  • फार्म इनपुट की कम जरूरत पड़ती है।
  • किसानों की आमदनी बढ़ती है।
  • केमिकल उर्वरक पर कम खर्च होता है।

जानिए कैसे करें फिश राइस फार्मिंग

इस तकनीक के तहत धान की फसल में जमा पानी में मछली पालन किया जाता है। अगर किसान चाहते हैं, तो धान से पहले ही मछली का कल्चर तैयार कर सकते हैं. इसके अलावा मछली कल्चर खरीद भी सकते हैं। किसानों को इस तरह 1.5 से 1.7 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रति सीज़न के हिसाब से मछली की उपज मिल सकती है। ध्यान रहे कि इस तरीके से मछलियों का उत्पादन खेती, प्रजाति और उसके प्रबंधन पर निर्भर करता है।

खेती की इस तकनीक में एक ही खेत में मछली व दूसरे जलजीवों को एक साथ रखा जाता है। इससे धान के उत्पादन पर किसी तरह का असर नहीं पड़ता है, बल्कि खेत में मछली पालन से धान के पौधों में लगने वाली कई बीमारियों से छुटकारा मिलता है।

अगर आप फिश राइस फार्मिंग करना चाहते हैं, तो इसके लिए निचली जमीन वाले खेत का चुनाव करें। इस तरह के खेत में काफी आसनी से पानी इकट्ठा हो जाता है। इसके साथ ही खेत को तैयार करते समय जैविक खाद का उपयोग करना चाहिए।

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