अधिक दूध देने वाली गाय-भैंसों को रहता है थनैला रोग का खतरा अधिक, जानें लक्षण और उपचार

अधिक दूध देने वाली गाय-भैंसों को रहता है थनैला रोग का खतरा अधिक, जानें लक्षण और उपचार

पशुओं में होने वाली बीमारियां अक्सर पशु पालक के लिए परेशानी का सबब बन जाती हैं। चूंकि गाय-भैंस के पालन का मुख्य उद्देश्य उनसे दूध की प्राप्ति करना होता है। ऐसे में थनैला रोग हो जाने पर पशु की दुग्ध उत्पादन क्षमता पर बेहद बुरा असर पड़ा होता है। गाय-भैंस के थन में होने वाले इस रोग में पशु के थन में दर्द, सूजन और कड़ापन रहने लगता है।

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ज्यादातर मामलों में देखा गया है अधिक दूध देने वाली गाय-भैंसों में थनैला रोग होने की संभावना अधिक होती है। ऐसे में पशु पालक को इस रोग के बारे में जानकारी होना आवश्यक है। आज हम आपको थनैला रोग के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।

जान लीजिए थनैला रोग होने के कारण

थनैला रोग विषाणु, जीवाणु, माइकोप्लाज्मा अथवा कवक से होता है। संक्रमित पशु के संपर्क में आने, दूध दुहने वाले के गंदे हाथों, पशुओं के गंदे आवास, अपर्याप्त और अनियमित रूप से दूध दुहने, खुरदरा फर्श और थन में चोट लगने व संक्रमण होने से भी यह रोग होता है। थनैला रोग संक्रमण तीन चरणों में फैलता है- सबसे पहले रोगाणु थन में प्रवेश करते हैं। इसके बाद संक्रमण उत्पन्न करते हैं तथा बाद में पशु के थन में सूजन पैदा करते हैं।

जान लीजिए थनैला रोग के लक्षण

थन में सूजन तथा दर्द होता है और कड़ा भी हो जाता है, बाद में थन में गांठ भी पड़ सकती है। दूध फट सा जाता है और फिर खून या मवाद पड़ जाता है। कभी-कभी दूध पानी जैसा पतला हो जाता है एवं दूध में छिछड़े अथवा रक्त मिश्रित दूधआने लगता हैं।

रोग परीक्षण

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अम्लीयता परीक्षण

सामान्य दूध का पीएच 6.0 से 6.8 परंतु थनैला रोग से युक्त दूध का पीएच 7.4 हो जाता है।

दूध को चखकर जांच

सामान्य तौर पर दूध में 0.12 प्रतिशत सोडियम क्लोराइड होता है लेकिन थनैला रोग से पीड़ित पशु के दूध में इसकी मात्रा 1.4% या अधिक हो जाती है।

अपने पशुओं को थनैला से बचाने के लिए बरतें ये सावधानियां

1- थनों को बाहरी चोट लगने से बचाएं।

2- पशु आवास के फर्श को सूखा रखें, समय-समय पर चूने का छिड़काव करें और मक्खियों पर नियंत्रण करें। दूध दोहने के लिए पशु को दूसरे स्वच्छ स्थान पर ले जाएं।

3- दूध दोहन से पहले थनों को अच्छी तरह से साफ पानी से धोना ना भूले। उसके पश्चात पोटेशियम परमैंगनेट के घोल से हाथ तथा थन धोकर दूध निकालने से पशु को यह रोग लगने की संभावना कम होती है ।

4- दूध जल्दी से और एक बार में ही दोहन करें अधिक समय न लगाएं।

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5- दूध दुहने से पूर्व साबुन से अपने हाथ अच्छी तरह से धो लें।

6- थनैला बीमारी से ग्रस्त थन का दूध सबसे अंत में अलग बर्तन में दुहे तथा उसे उपयोग में ना लाएं।

7- घर में स्वस्थ पशुओं का दूध पहले और बीमार पशु का दूध अंत में निकालें।

8- दूध निकालने के बाद थन नली (टीट कैनाल) कुछ देर तक खुली रहती है व इस समय पशु के फर्श पर बैठ जाने से रोग के जीवाणु थन नली के अंदर प्रवेश पाकर बीमारी फैलाते हैं। अतः दूध देने के तुरंत बाद दुधारू पशुओं को पशुआहार दें जिससे कि वह कम से कम आधा घंटा फर्श पर न बैठे।

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