अपने पशुओं को चाहते हैं अकस्मात मौत से बचाना, जान लें जानलेवा बीमारी रेबीज के लक्षण और बचाव के तरीके

अपने पशुओं को चाहते हैं अकस्मात मौत से बचाना, जान लें जानलेवा बीमारी रेबीज के लक्षण और बचाव के तरीके

तेजी से बदलती दुनिया में वायरस कब किस रूप में आ के तबाही मचा दे कोई नहीं जानता। वायरल रोग ना सिर्फ इंसानों बल्कि पशुओं के लिए भी कई बार जानलेवा साबित होते हैं। रेबीज एक ऐसा रोग है जिसका बचाव ही एकमात्र उपाय है। किसी भी पशु को पूरी तरह से रेबीज होने पर यह लाइलाज बीमारी हो जाती है, जिस कारण पशु की मृत्यु तक हो जाती है।

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रेबीज का जानलेवा विषाणु मुख्य रूप से कुत्ता, बिल्ली, बंदर, लोमड़ी, भेड़िया आदि जानवरों की लार में पाया जाता है। इनके काटने पर इंसान हो या पशु दोनों में रेबीज होने की संभावना बढ़ जाती है। इसी कारण कुत्ता पालने वाले लोगों को उसे रेबीज का टीका जरूर लगवाना चाहिए, जिससे उसके द्वारा किसी को काटे जाने पर रेबीज की संभावना खत्म हो सके।

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पालतू कुत्तों का तो टीकाकरण संभव है मगर आवारा व जंगली पशुओं का टीकाकरण ना हो पाने पर पशुओं को रेबीज जैसी जानलेवा बीमारी का खतरा हमेशा बना रहता है। ऐसे में आज हम आपको रेबीज रोग के बारे में कुछ अहम जानकारियां देने जा रहे हैं।

जान लीजिए रेबीज रोग के बारे में जरूरी जानकारी

1. रेबीज एक विषाणु से फैलने वाला रोग है जिसका बचाव टीकाकरण द्वारा ही संभव है।

2. मनुष्य में रेबीज से मृत्यु के कारणों में कुत्ते द्वारा काटे जाने प्रमुख है।

3. मनुष्य में होने वाली 99 प्रतिशत रेबीज, कुत्ते के काटने से फैलती है।

4. रेबीज से निदान संभव है केवल निम्न दो बातों का ध्यान आवश्यक है:

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क. कुत्तों में रेबीज के बचाव का टीकाकरण।

ख. कुत्तों द्वारा काटे जाने से बचाव।

5. एशिया और अफ्रीका में हर साल रेबीज से हजारों मौतें होती हैं।

6. रेबीज से मरने वालों में 40 प्रतिशत बच्चे 15 साल से कम उम्र के होते हैं।

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7. काटने के तुरन्त पश्चात यदि घाव को साफ पानी व साबुन से अच्छी तरह धो लिया जाए तो यह 50 प्रतिशत तक बचाव कर सकता है।

8. रेबीज को केवल होने से पहले रोका जा सकता है परन्तु इसका इलाज संभव नहीं है।

9. पालतू कुत्तों से भी रेबीज हो सकता है, यदि उन्हें रेबीज का टीका नहीं लगवाया गया हो।

रेबीज से बचाव के लिए जान लें ये आवश्यक बातें

1. क्या काटने वाला जानवर पालतू था या जंगली था?

2. वह स्वस्थ था या बीमार था?

3. बीमारी के क्या लक्षण थे?

4. काटने वाले जानवर को रेबीज के टीके लगे थे या नहीं? यदि लगे थे तो कब?

5. घाव किस प्रकार का है? एवं शरीर के किस भाग पर घाव है?

6. क्या काटने वाला कुत्ता या जानवर काटने के पहचान अगले 21 दिन तक निगरानी के लिए उपलब्ध है? यदि नहीं तो उसे मान कर बचाव के लिए टीकाकरण आरम्भ कर दें।

निदान:

1. लक्षण के आधार पर।

2. हिस्टोपैथलोजिकल परीक्षण मस्तिष्क में नेगरी बोडी मजबूत होना।

3. फ्लोरी-सेंट ऐटीबोडी मौजूद टैस्ट।

इलाज:

एक बार यदि रेबीज लक्षण आ जाएं तो इसका उपचार संभव नहीं है, रोग के लक्षण प्रकट हो जाने पर पशु या मनुष्य की मौत निश्चित है। दवाइयों की सहायता से केवल रोगी पशु में उत्तेजना, दौर तथा कष्ट को कम किया जा सकता है इसलिए इसकी रोकथाम ही एकमात्र उपाय है।

गाय-भैंस में रेबीज रोग होने पर दिखने लगते हैं ये लक्षण

1. पशु अस्थिर अवस्था में लड़खड़ाया नजर आता है, पशु अन्य पशुओं या दीवार से टकराता रहता है।

2. हल्का तापमान, अस्वस्थता, भूख का कम लगना व दूध उत्पादन में कमी।

3. कान का बार-बार कांपना व हिलना।

4. मुख की मांसपेशियों के पक्षाघात के कारण पशु मुंह खुला रखता है मानो कोई चीज फंसी हो तथा अधिक लार गिराता व दांत पीसता है।

5. पशु को कुछ निगलने व पानी पीने में तकलीफ होती है व बिना आवाज रंभाने की कोशिश करता है।

7. पशुओं में यौन इच्छा बढ़ जाती है, बार-बार पेशाब करते हैं, गाय व भैंस गर्मी के लक्षण प्रकट करती है जबकि सांड गाय व भैंस पर चढ़ता है।

8. ये लक्षण 1-3 दिन चलते हैं बाद में जल्दी ही तेज पक्षाघात के कारण कुछ ही घंटों में पशु की मौत हो जाती है।

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