मछलियों के लिए कृत्रिम फीड

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जिस प्रकार मुर्गी के चूजों के लिए मुर्गी दाना बनाया जाता है, उसी प्रकार मछली के लिए भी मछली की खुराक बनाई जाती है । मछली के लिए खुराक बनाने हेतु मुख्य रूप से चावल की भूसी तथा सरसों की खल का प्रयोग किया जाता है। इन दोनों प्रकार के पदार्थों को समान मात्रा में मिला लिया जाता है। इसमें कुछ मात्रा मछली का चूरा मिला दिया जाए तो इसके पौष्टिक तत्व बढ़ जाते हैं तथा मछली अधिक चाव से खाती है। ग्रास कार्प मछली को छोड़ रोष पांच प्रकार की मछलियों के लिए इस प्रकार की खुराक का इस्तेमाल किया जाता है। ग्रास कार्प मछली को अतिरिक्त भोजन हाइड्रिला, वैलिसनेरिया आदि पानी के पौधे तथा दूसरी प्राक्रतिक फीड जैसे बरसीन आदि दी जाती है।

कृत्रिम भोजन देने की विधि:

कृत्रिम रूप से बनाई गई खुराक को प्रतिदिन निश्चित समय के अनुसार प्रायः सुबह तालाब में कुल उपलब्ध मछली स्टाक के वजन का कम से कम 1 प्रतिशत तथा अधिक से अधिक 5 प्रतिशत की दर से दी जाती है।

उदाहरण: मान लें कि आपके तालाब में कुल एक क्विंटल मछलियां हैं तो प्रतिदिन तालाब में निश्चित किये गये समय के अनुसार कम से कम 1 किलो तथा अधिक से अधिक 5 किलो उपरोक्त खुराक का इस्तेमाल करें। तालाब में मछली का कुल भोजन जानने के लिए 15-15 दिन बाद जाल लगाते रहें तथा तालाब में मछली की कुल संख्या व वजन ज्ञात करते हुए औसत वजन निकाल लें।

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मछली पालन के लिए प्रतिदिन दी जाने वाली खुराक निम्नलिखित है :

( किग्रा . प्रतिदिन ) चार प्रकार की खेती के लिए छः प्रकार की मछलियों की खेती के लिए (रोहू मृगल, कतला, कॉमन कार्प सिल्वर कार्प व ग्रास कार्प ) पहले 90 दिवस 2 दूसरे 90 दिवस 6 तीसरे 90 दिवस चौथे 90 दिवस तालाब में पल रही मछलियों को कृत्रिम भोजन देने हेतु निम्न तरीके अपनाये जाते हैं जिनका उल्लेख इस प्रकार है:

  1. इस तरीके के अंतर्गत तैयार की गई खुराक को निश्चित दिन तथा समय अनुसार तालाब की सतह पर छिड़क दिया जाता है।
  2. एक दूसरे तरीके के अंतर्गत बनाई गई खुराक को तालाब में डालने से चार - पांच घंटे पूर्व भिगो दिया जाता हैं। इसके पश्चात अच्छी तरह से मिलाकर गाढ़े घोल के रूप में तालाब में दो-तीन स्थानों पर डाल दिया जाता है। यह तरीका भी त्रुटिपूर्ण है क्योंकि इस प्रकार डालने से एक तो पानी गंदा हो जाता है तथा दूसरे मछलियों द्वारा इसका ठीक उपयोग नहीं किया जा सकता।
  3. एक अन्य तरीके के अंतर्गत बनाई गई खुराक के बड़े-बड़े गोले बना लिये जाते हैं तथा निश्चित दिन एवं समय पर इन गोलों को तालाब में निश्चित पांच या छह स्थानों पर फेंक दिया जाता है। यह तरीका उपरोक्त दो तरीकों से अच्छा है क्योंकि एक तो इसमें पानी गंदा नहीं होता और खुराक धीरे - धीरे तालाब में फैलती है तथा यह भी पता लगाया जा सकता है कि मछलियाँ इसका प्रयोग कर रही हैं या नहीं।
  4. इस तरीके के अंतर्गत पानी में भोजन तश्तरी का प्रयोग किया जाता है। इस तश्तरी की तली में बारीक़-बारीक़ छिद्र होते है। बनाये गये खुराक के गोले इस तश्तरी में रख दिये जाते हैं तथा यह तश्तरी एक स्थान से दूसरे स्थान पर बंधी रहती है। सभी तश्तरियां एक ही गहराई पर नहीं बाँधी जाती है परन्तु पानी की अलग-अलग गइराई पर बंधी होती है। यह तरीका उपरोक्त बताये गये तीनों तरीकों से अच्छा है क्योंकि इस तरीके में सभी प्रकार की मछलियों को समान मात्रा में खुराक मिलती है। दूसरे खुराक अनावश्यक रूप से बेकार नहीं जाती तथा तश्तरी में बची हुई खुराक को तालाब से बाहर भी निकाला जा सकता है । इसके अतिरिक्त इस तरीके से यह भी पता लगाया जा सकता है कि तालाब में उपलब्ध मछलियाँ किस दर से प्रतिदिन भोजन का उपयोग कर रही हैं ताकि भोजन की दर बदली जा सके। यह तश्तरियां कई स्थानों पर बंधी होने के फलस्वरूप मछली को भोजन प्राप्ति हेतु एक स्थान से दूसरे स्थान तक घूमना होता है जिससे उनका व्यायाम होता है, जो कि मछली की बढ़ोतरी में उपयोगी है।
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5. ग्रास कार्प को कृत्रिम खुराक देने हेतु कुछ पानी के पौधे जैसे हाइड्रिला . वेलिसनेरिया आदि तथा बरसीम जैसे हरे शैवाल का उपयोग किया जाता है। कई मत्स्य पालक जलीय पौधों या बरसीम जैसे हरे चारे का उपयोग करते है। कई मत्स्य पालक इन पौधों या बरसीम को काट कर तालाब में डाल देते है। यह बहुत ही गलत तरीका है क्योंकि इससे एक तो यह अनुमान नहीं हो सकेगा कि प्रतिदिन या सप्ताह में कितनी मात्रा चाहिए, दूसरा यह कि पौधे एक ही स्थान पर बैठ जायेंगे, जिससे कि सभी मछलियाँ एक स्थान पर एकत्रित हो जाएंगी और उन्हें खाने में कठिनाई होगी। इसके अतिरिक्त फालतू खुराक गलने के कारण पानी में गंदगी फैलेगी।

6. ग्रास कार्प का खुराक देने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि बांस की खपच्चियों का एक तैरने वाला मंच बना लिया जाए तथा बरसीम या हाइड्रीला इस मंच पर इस प्रकार रख दिया जाए जिससे कि इसका कुछ भाग पानी में लटका रहे। इस तरीके के मुख्य लाभ यह है कि एक तो खुराक बेकार नहीं होती, दूसरा यह कि खुराक की मात्रा का पता लगाया जा सकता है। तीसरा यह कि पानी में गंदगी नहीं होती है। इसके साथ मछली का व्यायाम हो जाता है जो कि उसकी बढ़ोतरी हेतु लाभदायक है।

7. मत्स्य पालकों को को यह भी सुझाव दिया जाता है कि वे अपने तालाब के पानी की समय-समय पर जांच करते रहें। जांच द्वारा यह पाया जाए कि तालाब में प्राकृतिक खुराक निश्चित मात्रा में अधिक है तो कुछ समय के लिए खुराक देना बंद कर दें अन्यथा पानी में ज्यादा खुराक होने के कारण पानी में ऑक्सीजन गैस की कमी आ जाएगी,  जिससे कि मछली के मरने की संभावना हो सकती है।

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