भैंस पालन से मुनाफा होगा बेहिसाब, बस इन बातों का रखें ध्यान

भैंस पालन से मुनाफा होगा बेहिसाब, बस इन बातों का रखें ध्यान

भारत में अगर दुधारू पशुओं की बात करें तो गाय के साथ प्रमुख रुप से भैंस का नाम भी शामिल किया जाता है। डेयरी व्यवसाय करने वालों के लिए भैंस बेहद उपयोगी पशु साबित होती है। चूंकि भैंस पालन का मुख्य उद्देश्य उससे दूध उत्पादन करना ही होता है, इसलिए भैंस पालने से पहले उसकी नस्ल के बारे में जान लेना बेहद आवश्यक होता है। भारत में कुछ प्रमुख नस्ल की भैंसे हैं जोकि दूध देने के मामले में उपयोगी साबित होती हैं।

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इसके अलावा भैंस पालन से मुनाफा कमाने के लिए भैंस के आवास प्रबंधन और संतुलित पोषक पशु आहार पर भी ध्यान देना महत्वपूर्ण है। तो अगर आप भी भैंस पालन करने के इच्छुक हैं आज हम आपको भैंस की प्रमुख नस्लों और उनके रखरखाव के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।

जानिए कौन सी हैं प्रमुख नस्ल की भैंसे

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मुर्रा नस्ल

मुर्रा नस्ल की भैंस की उत्पत्ति का स्थान रोहतक, हरियाणा को माना जाता है। इस नस्ल की भैसों की प्रतिदिन दुग्ध उत्पादन क्षमता 12 से 20 लीटर तक पाई जाती है। इस नस्ल की भैसों का रंग गहरा काला पाया जाता है। जिसकी पूंछ, सिर और पैर पर सुनहरी रंग के बाल पाए जाते हैं। इनका सिर पतला और सिंग गोल जलेबी की तरह मुड़े हुए होते हैं। इस नस्ल की भैसों की पूंछ लम्बी पाई जाती है। इसके दूध में प्रोटीन की मात्रा 7 प्रतिशत पाई जाती है। इस नस्ल के पशुओं के दो ब्यांत के बीच का अंतराल 400 से 500 दिन के बीच पाया जाता है।

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सुरती

भैंस की ये नस्ल गुजरात में पाई जाती है। इन नस्ल की भैसें कम भूमि या भूमि हिन किसानों के लिए उपयुक्त होती है, क्योंकि इसके खाने पर खर्च कम होता है। इस नसल के पशु आकार में छोटे पाए जाते हैं, जिनका रंग भूरा काला या सिल्वर सलेटी होता है। इस नस्ल के पशुओं का मुख लम्बा पाया जाता है और आँखें बहार की तरफ निकली हुई दिखाई देती हैं। इसके सींगों का आकार कम गोलाकार होता है। इस नस्ल की भैंस एक ब्यांत में 900 से 1300 लीटर दूध देती है।

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जाफराबादी

भैंस की यह एक अधिक दूध देने वाली नस्ल है, जो गुजरात में पाई जाती है। जिसका उद्गम स्थान कच्छव, जामनगर जिला है। इस नस्ल की भैंस की लम्बाई अधिक पाई जाती हैं, जिनके सिंग नीचे की तरफ बढ़कर गोल घूमते हैं। इस नस्ल के पशुओं का मुख काफी छोटा होता है और सिर पर सफ़ेद टिका पाया जाता हैं। इस नस्ल के पशु एक ब्यांत में 2500 लीटर तक दूध देती है।

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संबलपुरी

संबलपुरी भैंस सबसे ज्यादा दूध देने वाली नस्ल है। इस नस्ल के पशु आकार में बड़े दिखाई देते हैं। इस नस्ल की भैंस के पैर नीचे से भूरे दिखाई देते हैं और इनका सिर भी भूरा पाया जाता है। इस नस्ल के पशुओं की ख़ास पहचान इनके सींग होते हैं, जो दराती के आकार में ऊपर की तरफ उठे हुए होते हैं। इस नस्ल की भैसें एक ब्यांत में औसतन 2600 लीटर दूध देती है। इस नस्ल का उद्गम स्थान उड़ीसा का सम्बलपुर जिला है।

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गोदावरी

गोदावरी नस्ल की भैंसों को ग्रेडिंग अप तकनीकी से बनाया गया है। इस नस्ल की भैसें आंध्र प्रदेश के गोदावरी जिले में पाई जाती हैं, जो मुर्रा नस्ल के नर से तैयार की गई हैं। इस नस्ल के दूध में वसा की मात्रा ज्यादा पाई जाती है। इस नस्ल के पशुओं में प्रजनन क्षमता सालाना पाई जाती हैं, जिनकी प्रति ब्यांत औसतन दुग्ध उत्पादन क्षमता 2100 से लेकर 2500 लीटर तक पाई जाती है।

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इनके अलावा और भी कई किस्में हैं, जिन्हें अलग अलग क्षेत्रों के आधार पर पाला जाता है, जिनमें नागपुरी, मेहसाना, तराई, टोड़ा और साथकनारा जैसी कई नस्लें शामिल हैं।

इस तरह रखें भैंस के आवास प्रबंधन का ध्यान

भैंस पालन के लिए सबसे जरूरी बात है कि उनके लिए रख रखाव साफ सुथरा हो। उनके लिए आरामदायक बाड़ा बनाया जाना चाहिए। बाड़ा ऐसा हो जो भैंस को सर्दी, गर्मी, बरसात से बचा सकें। बाड़ें में कच्चा फर्श हो लेकिन वह फिसलन भरा नहीं होना चाहिए। बाड़ें में सीलन न हो और वह हवादार हो। पशुओं के लिए साफ पानी पीने के लिए रखना चाहिए। अगर पशुओं को आराम मिलेगा तो उनका दूध उत्पादन उतना ही बेहतर होगा।

संतुलित रहे भैंस का आहार

1. भैंस के लिए आहार बेहद ही संतुलित होना चाहिए और इसके लिए दाना मिश्रण में प्रोटीन और ऊर्जा के स्त्रोतों एवं खनिज लवणों का पूरी तरह से समावेश होना चाहिए।

2. आहार पूरी तरह से पौष्टिक और स्वादिष्ट होना चाहिए और इसमें कोई दुर्गंध नहीं आनी चाहिए।

3. दाना मिश्रण में अधिक से अधिक प्रकार के दाने और खलों को मिलाना चाहिए।

4. आहार पूरी तरह से सुपाच्य होना चाहिए. किसी भी रूप में कब्ज करने वाले या दस्त करने वाले चारे को पशु को नहीं खिलाना चाहिए।

5. भैंस को पूरा भरपेट खाना खिलाना चाहिए। उसका पेट काफी बड़ा होता है, उसको पूरा पेट भरने पर ही संतुष्टि मिलती है। यदि भैंस का पेट खाली रह जाता है तो वह मिट्टी, चिथड़े और गंदी चीजें खाना शुरू कर देती है।

6. भैंस के चारे में हरा चारा अधिक मात्रा में होना चाहिए ताकि वह पौष्टिक रहें।

7. भैंस पालन के चारे में अचानक बदलाव न करें, यदि कोई भी बदलाव करना है तो पहले वाले आहार के साथ मिलाकर उसमें धीरे-धीरे बदलाव करें।

8. भैंस को ऐसे समय पर खाना खिलाएं कि वह लंबे समय तक भूखी न रहें यानि कि उसके खाने का एक नियत समय तय रखें और आहार में बार-बार बदलाव न करें।

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