फूड सिक्योरिटी में निभा सकता है मछली पालन महत्वपूर्ण भूमिका, जानें क्या है संभावनाएं

फूड सिक्योरिटी में निभा सकता है मछली पालन महत्वपूर्ण भूमिका, जानें क्या है संभावनाएं

नॉन वेज का सेवन करने वाले लोगों के लिए मछली प्रोटीन का सबसे अच्छा और सस्ता स्त्रोत बन सकती है। वैसे तो, लगातार बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ सभी को पौष्टिक भोजन प्रदान करना और सभी में प्रोटीन की कमी को पूरा करना एक बहुत ही बड़ी चुनौती है लेकिन मछली इस समस्या की हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। पूरे देश में इसकी संभावनाएं है और देश में बड़े बड़े जलाशय है, कई नदीयां बहती है और कई लोग मछली पालन का व्यवसाय करते हैं।

जानिए क्यों है मछली महत्वपूर्ण

यह तो हम सभी जानते ही है कि पूरी पृथ्वी के 75 फीसदी हिस्से में पानी है और 25 फीसदी हिस्से में जमीन है। यदि इस पानी के इस बड़े स्त्रोत पर खाद्य पदार्थों की निर्भरता बढ़ा दी जाए तो इससे खाद्य सुरक्षा को सुनश्चित किया जा सकता है। खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए मछली एक बेहतरीन विकल्प बनi सकती है। धान सब्जी या अन्य फसलों की तरह इसकी भी बाजार में बिक्री के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ता है, आप मछली के 100-200 ग्राम होने पर भी इसे बाजार में बेच सकते है। सरायकेला जिला के जिला मत्स्य पदाधिकारी प्रदीप कुमार सिंह जी ने बताया कि बढ़ती जनसंख्या की मांग को पूरी करने के लिए अब हॉरीजॉन्टल नहीं बल्कि वर्टीकल फार्मिंग पर अधिक ध्यान देना होगा। हमें एक स्त्रोत से अधिक पैदावार लेना होगा और इसके लिए पानी एक अच्छा विकल्प है। वर्टिकल फार्मिंग करके आप एक ही जगह से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते है। इसी के साथ हमें जहां भी पानी मिले वहां पर मछली पालन करना होगा ताकि पानी के हर स्त्रोत का अच्छे से इस्तेमाल किया जा सके।

इन तकनीकों से कर सकते है मछली पालन

कैप्चर फिशरीज: कैप्चर फिशरीज प्रणाली कभी सस्ती होती है तो कभी महंगी भी होती है क्योंकि इसमें जो भी बड़े जलस्त्रोत होते है वहां से मछलियां पकड़ी जाती है। इसमें मछली पालन करने के लिए कोई खर्च नहीं करना पड़ता है और जो भी खर्चा होता है वो सिर्फ मछली पकड़ने में किया जाता है।

कल्चर फिशरीज: इस प्रणाली के तहत तालाब, RAF व केज कल्चर प्रणाली द्वारा मछली पालन किया जाता है। बड़े जलाशयों में RAF और केज कल्चर प्रणाली द्वारा मछली पालन किया जाता है।

कैप्चर कम कल्चर फिशरीज: कई बार ऐसा हो जाता है कि बड़े जलाशयों से लोग मछली पहले निकालने के लिए छोटी मछलियों को भी निकाल लेते है और उन्हें बेच देते है, इस वजह से इन जगहों पर मत्स्य बीज संचयन किया जाता है ताकि सबको मछलियां मिल सके और इसके माध्यम से लोगों को रोजगार मिल सकें। इस प्रणाली को रैंचिंग भी कहा जाता है।

कृषि भी अच्छा विकल्प है मछली पालन

मछली पालन करने में धान की खेती से भी अधिक पानी की बचत होती है। प्रदीप कुमार जी ने बताया कि एक क्विंटल धान को ऊपजाने और एक क्विंटल मछली उत्पादन करने के लिए जब पानी की बजटिंग की गयी तब पाया गया कि मछली उत्पादन करने में केवल 30 प्रतिशत ही पानी का इस्तेमाल होता है और इसके साथ ही इससे बेहतर कमाई भी की जा सकती है। एक एकड़ की भूमि में धान उपजाने से करीब 20-25 हजार रुपये की कमाई होती है तो एक एकड़ के क्षेत्रफल के तालाब में एक साल में आप डेढ़ से दो लाख रुपये की कमाई कर सकते है। इसमें लागत भी कम होती है।

खाली पड़े खादानों में भी कर सकते है मछली पालन

खाली पड़े खादानों में भी आप पानी का टेस्ट करके मछली पालन कर सकते है, लेकिन इसमें सिर्फ केज कल्चर के माध्यम से ही मछली पालन करना बेहतर होता है क्योंकि अधिक गहराई में जाने पर मछली के शरीर में हानिकारक मिनरल्स जमा हो सकते हैं और इसे खाने पर लोग बीमार भी पड़ सकते हैं।

देश की जीडीपी में मछली पालन से हुई कमाई का 1.2 फीसदी होता है और कृषि की कुल कमाई में से 10 फीसदी केवल मछली पालन के जरिए होता है। अगर बेहतर व सही तरीके से मछली पालन किया जाए तो यह आंकड़ा और भी बढ़ सकता है।