झींगा मछली पालन करने वालों को घाटे से बचाएगी GADVASU किट

झींगा मछली पालन करने वालों को घाटे से बचाएगी GADVASU किट

लुधियाना, लुधियाना में स्थित गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने झींगा मछली में होने वाली बीमारीअर्ली मोर्टेलिटी सिंड्रोम (ईएमएस) का पता लगाने के लिए एक नई किट की खोज की है। इस किट की मदद से झींगा मछली पालन करने वाले लोगों को इस बीमारी का केवल 10 मिनट में पता लगा सकते है।

गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक द्वारा तैयार की गई किट

झींगा मछली पालन करने वाले लोगों के लिए यह एक बड़ी राहत की खबर है। पंजाब में फाजिल्का, मानसा, मुक्तसर साहिब, बठिंडा व फरीदकोट में अधिक लोकप्रियता से झींगा मछली पालन किया जा रहा है। वर्ष 2014 में 0.4 हेक्टेयर क्षेत्र में झींगा मछली पालन हो रहा था, यह वर्ष 2020 में बढ़कर 158 हेक्टेयर हो गया था।

चार साल के गहन शोध के बाद बनाया गया किट

लुधियाना में स्थित गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी (Guru Angad Dev Veterinary and Animal Sciences University GADVASU) के कॉलेज ऑफ फिशरीज के वैज्ञानिकों ने चार साल का गहन शोध करने के बाद झींगा मछली में होने वाली बीमारी अर्ली मोर्टेलिटी सिंड्रोम (ईएमएस) का पता लगाने के लिए एक नई किट की खोज की है। इस बीमारी से झींगा मछली शुरुआत के ही सात से 10 दिनों के भीतर बड़ी संख्या में मर जाती हैं।

पूरी दुनिया में इस बीमारी के कारण झींगा मछली पालन के उद्योग को भारी घाटा हो रहा है। इस कीट को गडवासू के कॉलेज ऑफ फिशरीज के वैज्ञानिक डॉ. नवीन कुमार जी व उनकी टीम ने तैयार किया है। डॉ. नवीन कुमार जी का दावा है कि इस किट के जरिए केवल आठ से दस मिनट में ही झींगा मछली में होने वाली यह बीमारी पकड़ में आ जाएगी और सही समय पर इस बीमारी से बचाव के लिए कदम उठाए जा सकेंगे।

जानिए इस किट से जुड़ी जानकारी

डॉ. नवीन जी ने बताया हैं कि उन्होंने विशेष प्रकार का प्रोटीन (रिकांबिनेंट प्रोटीन) बनाया, जिससे एंटीबॉडी विकसित की और उनसे यह किट तैयार की गई है। उन्होंने बताया कि जब ट्रायल किए गए, तो यह काफी प्रभावी पाया गया। डॉ. नवीन जी ने बताया कि किट में पांच तरह के अलग-अलग सॉल्यूशन मौजूद हैं। एक किट में 10 कैसेट हैं और एक कैसेट के माध्यम से चार से छह सैंपल टेस्ट किए जा सकते है।

बीमारी का पता लगाने के लिए तैयार किया गया है यह किट

डॉ. नवीन जी ने बताया कि झींगा मछली में ईएमएस बीमारी वर्ष 2009 से दुनिया के कई बड़े देश जैसे चीन, वियतनाम, मलेशिया, थाईलैंड, मैक्सिको, यूएसएस में आदि में पाई गई थी। इस बीमारी के कारण अब तक करीब एक बिलियन यूएस डॉलर (100 करोड़) का नुकसान हो चुका है। भारत में कई राज्यों में बड़े स्तर पर झींगा मछली का उत्पादन किया जा रहा है। इसके चलते केंद्र सरकार के साइंस टेक्नोलॉजी विभाग ने गड़वासु को यह प्रोजेक्ट दिया था। ऐसा इसलिए ताकि इस बीमारी का समय पर पता लगाया जा सके और भारी नुकसान से बचा जा सके।

डॉ. नवीन जी मे बताया कि अब वे विदेश से ब्रूड स्टाक झींगा (विशिष्ट रोगजनक मुक्त) को ले रहे हैं। वे बोर्ड स्टाफ को राजीव गांधी सेंटर फॉर एक्वाकल्चर में कुछ दिनों तक क्वारंटाइन भी रखते हैं। यह वे टेस्ट लेते है कि कहीं ब्रूट स्टाक में ईएमएस या कोई अन्य गंभीर बीमारी तो नहीं है। टेस्टिंग में जब सुनिश्चित हो जाता है कि कोई बीमारी नहीं है, तो झींगा सीड उत्पादन करके मछली पालकों को दे दिया जाता है।