गर्मी के मौसम में लू लगने पर पशु देता है ये संकेत, जान लें लक्षण और बचाव के तरीके

गर्मी के मौसम में लू लगने पर पशु देता है ये संकेत, जान लें लक्षण और बचाव के तरीके

तपती गर्मी केवल इंसान ही नहीं बल्कि पशुओं के लिए भी परेशानी का सबब बनती है। चूंकि फिलहाल यूपी समेत भारत के कई राज्यों में गर्मी के कारण तापमान तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में इस मौसम के अनुरूप पशुओं को देखभाल की जरूरत होती है। गर्मी के मौसम में दोपहर के समय में तापमान तेजी से बढ़ता है। इस समय में पशुओं को लू लगने का खतरा सर्वाधिक रहता है। गर्मी के मौसम में पशु पालन के व्यवसाय में नुकसान से बचने के लिए पशु पालक को अपने पशुओं को लू से बचाकर रखने की आवश्यकता होती है।

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पशु पालक को इस मौसम में पशुओं में लू लगने के लक्षण और उनके बचाव के तरीकों के बारे में भी जानकारी होना आवश्यक है। लू लगने पर पशुओं में कुछ लक्षण दिखाई देते हैं, जिन्हें पहचानकर आप उसके अनुसार अपने पशु का उपचार करा सकते हैं।

पशुपालक में जानकारी का अभाव होने पर और पशु को समय पर इलाज ना मिलने पर लू लगने से कई बार पशु की मृत्यु तक हो जाती है।  ऐसे में आज हम आपको गर्मी के मौसम में पशुओं में लू लगने के लक्षण और उससे बचाव के कुछ तरीके बताने जा रहे हैं।

जानिए लू लगने पर पशुओं में कौन-कौन से लक्षण दिखाई देते हैं

1- पशु आहार लेने में अरुचि दिखाता है।

2- दुधारू पशुओं के दुग्ध उत्पादन में कमी होना।

3- नाक से खून बहना एवं पतला दस्त होना।

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4- आंख व नाक लाल होना, एवं हृदय की धड़कन का तेज होना।

5- पशु गहरी सांस लेता है व हांफने लगता है। मुंह से जीभ बाहर निकलना, अंतिम अवस्था में श्वास कमजोर पड़ जाती है।

6- पशु की अत्याधिक लार बहती है, मुंह के आसपास झाग आ जाता है।

7- पशु बेचैनी दिखाता है, छाया ढूंढता है तथा बैठता नहीं है।

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8- प्रजनन क्रिया क्षीण मंद हो जाना- इस मौसम में भैसों व संकर नस्ल गायों की प्रजनन क्षमता मंद हो जाती है तथा मदचक्र लम्बा हो जाता है एवं मद अवस्था का काल व उग्रता दोनों बढ़ जाती है। जिसके कारण पशुओं में गर्भधारण की संभावना काफी घट जाती है

9- गाय, भैंसों के दूध में वसा तथा प्रोटीन की मात्रा कम हो जाती है, जिससे दूध की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

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10- मादा में भ्रूणीय मृत्यु दर बढ़ जाती है।

11- पशु का व्यवहार असामान्य हो जाता है।

12- नर पशु की प्रजनन क्षमता घट जाती है।

13- नर पशु से प्राप्त वीर्य में शुक्राणु मृत्यु दर अधिक पाई जाती है।

14- नर व मादा पशु की परिपक्वता अवधि बढ़ जाती है।

15- बच्चों की अल्प आयु में मृत्यु दर बढ़ जाती है।

16- बीमार पशु की उचित देखभाल न होने के कारण उसकी मृत्यु तक हो जाती है।

जानिए पशुओं को लू लगने पर क्या करें और कैसे बचाएं

1- डेरी को इस प्रकार बनाएं कि सभी जानवरों के लिए उचित स्थान हो ताकि हवा को आने जाने के लिए जगह मिले।

2- सीधे तेज धूप और लू से पशुओं को बचाने के लिए पशुशाला के मुख्य द्वार पर खस या जूट के बोरे का पर्दा लगाना चाहिये।

3- मवेशियों को गर्मी से बचाने के लिए पशुपालक पशु आवास में पंखे, कूलर और फव्वारा सिस्टम लगा सकते हैं। पंखों या फव्वारे के द्वारा पशुशाला का तापमान लगभग 15 डिग्री तक कम किया जा सकता है।

पशु शाला के अंदर जो पंखे प्रयोग में लाये जाते हैं, उनका आकार 36-48 इंच और जमीन से लगभग 5 फीट ऊंची दीवार पर 30 डिग्री एंगल पर लगाना चाहिए। पशुशाला को कूलर लगाकर भी ठंडा किया जा सकता है। एक कूलर लगभग 20 वर्गफुट की जगह को ठंडा कर सकता है।

4- छायादार वृक्षों की मौजूदगी पशुशाला के तापमान को कम रखने में सहायक होती है।

5- पशुओं को छायादार स्थान पर बांधना चाहिये। दिन के समय में उन्हें अन्दर बांध कर रखें।

6- पर्याप्त मात्रा में साफ सुथरा ताजा पीने का पानी हमेशा उपलब्ध होना चहिये। पीने के पानी को छाया में रखना चाहिये।

7- पशुओं से दूध निकालनें के बाद उन्हें यदि संभव हो सके तो ठंडा पानी पिलाना चाहिये।

8- गर्मी में 3-4 बार पशुओं को अवश्य ताजा ठंडा पानी पिलाना चहिये। पशुशाला में यदि पशुसंख्या अधिक हो तो पानी की कम से कम 2 जगह व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे पशु को पानी पीने में असुविधा न हो। सामान्यत: पशु को 3-5 लीटर पानी की आवश्यकता प्रति घंटे होती है। इसे पूरा करने के लिये पशु को पर्याप्त मात्रा में पानी पिलाना चाहिए। पानी व पानी की नांद सदैव साफ होना चाहिए।

9- भैंसों को गर्मी में 3-4 बार और गायों को कम से कम 2 बार नहलाना चाहिये।

10- पशुशाला की छत यदि एस्बेस्टस या कंक्रीट की है तो उसके ऊपर 4-6 इंच मोटी घास फूस की तह लगा देने से पशुओं को गर्मी से काफी आराम मिलाता है ।

11- खाने-पीने की नांद को नियमित अंतराल पर चूने से साफ करते रहना चाहिये। रसोई की जूठन और बासी खाना पशुओं को कतई नहीं खिलाना चाहिये।

12- कार्बोहाइड्रेट की अधिकता वाले खाद्य पदार्थ जैसे: आटा, रोटी, चावल आदि पशुओं को नहीं खिलाना चाहिये। पशुओं के संतुलित आहार में दाना एवं चारे का अनुपात 40 और 60 का रखना चहिये।

13- गर्मियों के मौसम में पैदा की गयी ज्वार में जहरीले पदर्थ हो सकते हैं जो पशुओं के लिए हानिकारक होते हैं। अतः इस मौसम में यदि बारिश नहीं हुई है तो ज्वार खिलाने के पहले खेत में 2-3 बार पानी लगाने के बाद ही ज्वार चरी खिलाना चहिये ।

14- पशुचारे में अम्ल घुलनशील रेशे की मात्रा 18-19 प्रतिशत से ज्यादा होनी चाहिए। इसके अलावा पशु आहार अवयव जैसे-यीष्ट (जोकि रेशा पचाने में सहायक है), फंगल कल्चर (जैसे कि ऐसपरजिलस ओराइजी और नाइसिन) जो उर्जा बढ़ाते है देना चाहिये।

15- चूंकि पशु का दाना ग्रहण करने की क्षमता घट जाती है, अत: पशु के खाद्य पदार्थ में वसा, ऊर्जा बढ़ाने का अच्छा स्त्रोत है, इसकी पूर्ति के लिए पशु को तेल युक्त खाद्य पदार्थ जैसे सरसों की खली, बिनौला, सोयाबीन की खली, या अलग से तेल या घी आदि पशु को खिलाना चाहिए। पशु आहार में वसा की मात्रा लगभग 3 प्रतिशत तक पशु को खिलाये गये शुष्क पदार्थों में होती है। इसके अलावा 3-4 प्रतिशत पशु को अलग से खिलानी चाहिए। कुल मिलाकर पशु को 7-8 प्रतिशत से अधिक वसा नहीं खिलानी चाहिए।

16- पशुओं का इस मौसम में गलाघोंटू, खुरपका मुंहपका, लंगड़ी बुखार आदि बीमारियों से बचाने के लिए टीकाकरण जरूर कराना चाहिये, जिससे वे आगे आने वाली बरसात में इन बीमारियों से बचे रहें।

17- गर्मी के दिनों में दाने के रूप में प्रोटीन की मात्रा 18 प्रतिशत तक दुग्ध उत्पादन करने वाले पशु को खिलानी चाहिए। यह मात्रा अधिक होने पर अतिरिक्त प्रोटीन पशु के पसीने व मूत्र द्वारा बाहर निकल जाती है। पशु में कैल्शियम की पूर्ति के लिये लाईम स्टोन चूना पत्थर की मात्रा भी कैल्शियम के रूप में देनी चाहिए। जिससे पशु का दुग्ध उत्पादन सामान्य रहता है।

18- पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही पशु का इलाज कराएं।

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