खुरपका-मुंहपका रोग ना करे आपके पशु को परेशान, जान लें इसके लक्षण और उपचार

पशुपालन करने वाले लोगों के लिए पशुओं से जुड़ी बीमारियों की समझ होनी बेहद आवश्यक होती है। चूंकि ये पशु आमतौर पर पशुपालक की आमदनी का भी जरिया होते हैं ऐसे में पशु के स्वास्थ्य पर पड़े प्रभाव से पशुपालक का व्यापार भी प्रभावित होता है। खुरपका-मुंहपका रोग गाय-भैंसो समेत भेंड़, बकरी और अन्य पशुओं में पाया जाता है।
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ध्यान ना देने पर इस रोग की वजह से इन जहां एक तरफ इन पशुओं की दूध उत्पादन की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है वहीं दूसरी तरफ रोग गंभीर चरण में पहुंच जाने पर इससे पशु की मृत्यु भी हो सकती है। आज हम आपको खुरपका-मुंहपका रोग के लक्षण और उपचार के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें अपनाकर आप अपने पशु को इन दोनों बीमारियों से सुरक्षित रख सकते हैं।

जानिए क्या हैं खुरपका-मुंहपका रोग के लक्षण
इस रोग में होने पर पशु को तेज बुखार होता है। बीमार पशु के मुंह मे मुख्यत जीभ के उपर, होठो के अंदर, मसूड़ों पर साथ ही खुरों के बीच की जगह पर छोटे-छोटे छाले बन जाते है। फिर धीरे–धीरे ये छाले आपस में मिलकर बड़ा छाला बनाते हैं। समय पाकर यह छाले फूट जाते हैं और उनमें जख्म हो जाते हैं। मुंह मे छाले हो जाने की वजह से पशु जुगाली बन्द कर देता हैं और खाना पीना छोड़ देता है, मुंह से निरंतर लार गिरती रहती हैं साथ ही मुंह चलाने पर चाप चाप की आवाज भी सुनाई देती हैं।
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पशु सुस्त पड़ जाते और कुछ खाते–पीते नहीं हैं। खुर में जख्म होने की वजह से पशु लंगड़ाकर चलता है। दुधारू पशुओं में दूध का उत्पादन 80% तक कम हो जाता है। पशु कमजोर होने लगते हैं। प्रभावित पशु स्वस्थ्य होने के उपरान्त भी महीनों तक और कई बार आजीवन हांफते रहता है, शरीर के रोयें (बाल) तथा खुर बहुत बढ़ जाते हैं, गर्भवती पशुओं में गर्भपात की संभावना बनी रहती है।

जानिए इस रोग का उपचार
टीकाकरण ही इस बीमारी से बचाव के लिए सर्वोत्तम है इसलिए पशुओं को वर्ष में दो बार टीके अवश्य लगवाने चाहिए। इस रोग का कोई निश्चित उपचार नहीं है अतः रोगी पशु में सेकेन्डरी संक्रमण को रोकने के लिए उसे पशु चिकित्सक की सलाह पर एंटीबायोटिक के टीके लगाए जाते हैं अथवा रोगग्रस्त पशु के पैर को नीम एवं पीपल के छाल का काढ़ा बना कर दिन में दो से तीन बार धोना चाहिए। प्रभावित पैरों को फिनाइल-युक्त पानी से दिन में दो-तीन बार घोकर मक्खी को दूर रखने वाली मलहम का प्रयोग करना चाहिए।

मुंह के छाले को 1 प्रतिशत फिटकरी के पानी में घोलकर दिन में तीन बार धोना चाहिए। मुंह में बोरो-गिलिसरीन तथा खुरों में किसी एंटीसेप्टिक लोशन का प्रयोग किया जा सकता है। इस दौरान पशुओं को मुलायम एवं सुपाच्य भोजन दिया जाना चाहिए। पशु चिकित्सक के परामर्श पर दवा देनी चाहिए।
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