मछली पालन कैसे करें ? संपूर्ण जानकारी

भारत में मछलियों की काफी अच्छी मांग है और यह मांग लगातार बढ़ती ही जा रही है। आज कल के किसान खेती के साथ मछली पालन कर अपनी आय में बढ़ोतरी कर रहे है। ग्रामीण क्षेत्र में मछली पालन की रुचि इसलिए भी अधिक है, क्योंकि जहां एक हेक्टेयर के खेत में गन्ना, धान व गेहूं की फसल से किसानों को लगभग सवा लाख रुपये तक का लाभ होता है, वहीं इतनी ही भूमि में मछली पालन करने से किसानों को लगभग ढाई लाख रुपये का लाभ मिलता है।

मछली पालन कैसे करें संपूर्ण जानकारी Machli palan kaise kare full Information

मछली पालन करने के लाभ:

  • मछली पालन करना सरल होता है।
  • आप दोनों, बड़े और छोटे पैमाने पर मछली उत्पादन के उद्देश्य से मछली पालन शुरू कर सकते हैं।
  • आप कम पूंजी में भी मछली पालन शुरू कर सकते है।
  • मछली पालन व्यवसाय रोजगार का एक बहुत अच्छा स्रोत है।
  • मछली पालन कर आप अपनी आय को दोगुना कर सकते है।
  • यदि आपके पास अधिक जगह नहीं है तो आप टैंक में मछली पालन कर सकते है।
  • मछली पालन के लिए सरकार की ओर से लोन व सब्सिडी भी प्रदान की जाती है।

मछली पालन करने की प्रक्रिया:

मछली पालन करना बेहद आसान होता है, कोई शुरुआती भी इस काम को कर सकता है। मछली पालन शुरू करने के लिए आपको सबसे पहले उपयुक्त स्थान का चयन करना होता है।

मछली पालन के लिए उपयुक्त स्थान का चयन:

मछली पालन करने के लिए आपको सबसे पहले एक अच्छे स्थान का चयन करना होगा। मछली पालन में स्थान का चयन करना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।

मछली पालन के लिए तालाब

मछली पालन के लिए स्थान का चयन कैसे करें:

  • खड़ी ढलान वाली भूमि का चयन करने की बजाय अपेक्षाकृत स्तर की भूमि का चयन करें।
  • ऐसे स्थान का चयन करें जो बाढ़ और प्रदूषित क्षेत्रों से दूर हो।
  • ऐसे स्थान का चयन करें जहां की मिट्टी दोमट या चिकनी हो।
  • ऐसे स्थान का चयन करें जहां की मिट्टी अत्यधिक अम्लीय और क्षारीय न हो।
  • ऐसे स्थान का चयन करें जहा धूप पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो।

मछली पालन के लिए तालाब का निर्माण:

मछली पालन के लिए उपयुक्त स्थान का चयन करने के बाद आपको मछली पालन के लिए तालाब का निर्माण करवाना होगा। तालाब का निर्माण करवाने के बाद आपको उसे मछली पालन के लिए तैयार करना होगा।

  • तालाब में से सभी नरभक्षी मछलियों को निकले।
  • तालाब में से अत्यधिक जलीय पौधों को हटाए।
  • तालाब के पानी की क्षारीयता व अम्लता जांचें।
  • तालाब के वातावरण को उपयुक्त बनाने के लिए उसमें प्राकृतिक खाद का उपयोग करें।
  • इसके बाद तालाब में मछली के फिंगर्लिंग्स स्टॉक करें

मछलियों के लिए फीड:

मछलियों को भी विशेष खुराक दी जाती है। मछली के लिए खुराक बनाने के लिए मुख्य रूप से चावल की भूसी और सरसों की खल का प्रयोग किया जाता है। इन दोनों पदार्थों को एक समान मात्रा में मिला देते है यदि इसमें कुछ मात्रा में मछली का चूरा मिला दिया जाए तो इसमें पौष्टिक तत्व और बढ़ जाते है। ग्रास कार्प मछली को इस प्रकार की फीड नहीं दी जाती है क्योंकि ग्रास कार्प मछली को अतिरिक्त भोजन के रूप में हाइड्रिला, वैलिसनेरिया जैसे अन्य जलीय पौधे व अन्य प्राकृतिक फीड जैसे बरसीन दी जाती है।

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पूरक फीड:

यदि आप अधिक मात्रा में मछली पालन करते है और आप मछलियों को सिर्फ प्राकृतिक फीड देते है तो यह आपकी मछलियों सम्पूर्ण पोषण नहीं देगा, मछलियों के अच्छे उत्पादन के लिए आपको इन्हें पूरक फीड देना होगा। पूरक फीड में अमीनो एसिड की मात्रा उचित होनी चाहिए, पूरक फीड में कम से कम 35% प्रोटीन होना चाहिए और मछली की पूरक फीड में 10.5% कार्बोहाइड्रेट भी होना चाहिए।

प्राकृतिक फीड:

प्राकृतिक फीड का उत्पादन मिट्टी की गुणवत्ता और तालाब के पानी की गुणवत्तापर निर्भर करता है। आप तालाब में प्राकृतिक फीड के उत्पादन को बढ़ाने के लिए उर्वकों का प्रयोग कर सकते है। तालाब में विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक फीड होते है जैसे कि शैवाल, फाइटोप्लांकटन, जोप्लैंक्टोन, आदि। फाइटोप्लांकटन विभिन्न मछली प्रजातियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण प्राकृतिक फीड है और यह मछली के लिए बहुत ही आदर्श प्राकृतिक फीड है। जोप्लैंक्टोन भी मछलियों के लिए यह बहुत ही अच्छा फीड होता है। मछली के प्राकृतिक फीड के अच्छे उत्पादन के लिए आप तालाब में जैविक या अजैविक उर्वरकों का उपयोग कर सकते है।

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मछलियों को कृत्रिम फीड कैसे देते है

कृत्रिम विधि से बनाई गई खुराक को मछलियों को प्रतिदिन निश्चित समय के अनुसार प्रायः सुबह तालाब में कुल उपलब्ध मछली स्टाक के वजन का कम से कम 1 प्रतिशत और अधिक से अधिक 5 प्रतिशत की दर से देना चाहिए।

मछली पालन के लिए प्रजातियां:

  • सिल्वर कार्प
  • तिलापिया
  • ग्रास कार्प
  • रोहू
  • पंगास
  • कतला
  • कॉमन कार्प

बीज संचयन:

  • यदि आपके पास 3 इंच के जीरा है तो आप प्रति एकड़ की दर से तालाब में 4000 मछली के जीरा को डाल सकते है और अगर आपके पास 1 इंच के जीरा है तो आप प्रति एकड़ की दर से तालाब में 10,000 जीरा डाल सकते है।
  • यदि आप 6 प्रकार की मछलियों का पालन करना चाहते है तो 20% कतला, 30% रोहू, 10% सिल्वर कार्प, 10% ग्रास कार्प, नैन 15% और 15% कॉमन कार्प के अनुपात में स्टॉक करें।
  • यदि आप 4 प्रकार की मछलियों का पालन करना चाहते है तो 40% कतला, 30% रोहू, 15% नैन और 15% कॉमन कार्प के अनुपात में स्टॉक करें।

मछली पालन करने के लिए कुछ टिप्स

  1. मछली को प्रतिदिन ताजा और पौष्टिक फीड देना चाहिए।
  2. मछली पालन के तालाब में अत्यधिक रसायनों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  3. तालाब में नियमित रूप से जाल चलना चाहिए।
  4. मछली के स्वास्थ्य पर निगरानी रखनी चाहिए।
  5. मछली पालन में तालाब का वातावरण स्वच्छ बनाए रखना चाहिए।
  6. मछली पालन में नियमित रूप से तालाब के पानी और मिट्टी की गुणवत्ता की जांच करनी चाहिए।
  7. मछली पालकों को तालाब से सभी हानिकारक खरपतवारों को निकाल देना चाहिए और उन्हें बढ़ने नहीं देना चाहिए क्योंकि इससे मछली की कटाई करने में अधिक परेशानी हो सकती है।
  8. मछली पालन में तालाब से सभी अवांछित मछलियों और जीवों को निकाल देना चाहिए।
  9. मछली पालन के तालाब में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग जितना हो सके उतना कम करना चाहिए क्योंकि यह तालाब में मौजूद मछलियों के लिए हानिकारक हो सकता है।
  10. तालाब में उर्वरक का प्रयोग करने के 15 दिन बाद ही मछलियों का स्टॉक करना चाहिए।
  11. तालाब में मछलियों को तब तक स्टॉक नहीं करना चाहिए जब तक तालाब के पानी में विषाक्तता खत्म न हो जाए।
  12. तालाब में मछली के लिए प्राकृतिक फीड के उत्पादन को बढ़ाने के लिए जलीय पौधे लगाना चाहिए।
  13. तालाब में मछलियों का उचित दर और अनुपात में स्टॉक करना चाहिए क्योंकि बहुत कम या बहुत अधिक मात्रा में स्टॉकिंग करने से आपको अच्छा उत्पादन नहीं मिलेगा।
  14. मछलियों के अच्छे उत्पादन के लिए स्वस्थ और अच्छी गुणवत्ता वाले फिंगर्लिंग्स का का चयन करना चाहिए।
  15. मछली को उचित मात्रा में संतुलित व कृत्रिम फ़ीड देना चाहिए।
  16. मछली पालन में मछलियों को निश्चित समय पर फीड देना चाहिए।
  17. स्टॉक की गई मछलियां किस प्रकार के फीड का सेवन अच्छे से करती है इस बात का ध्यान रखना चाहिए और मछलियों को अत्यधिक फीड नहीं देनी चाहिए।
  18. मछली के रोग ग्रस्त होने पर उसे तुरंत तालाब से निकलना चाहिए और उचित उपचार करना चाहिए।

मछली देखभाल करने के लिए कुछ टिप्स:

  • मछली को ताजा और पौष्टिक फीड दें।
  • तालाब में अत्यधिक रसायनों का उपयोग न करें।
  • नियमित रूप से मछली के स्वास्थ्य की निगरानी रखें।
  • तालाब का वातावरण को स्वच्छ बनाए रखने की कोशिश करें।
  • नियमित रूप से तालाब के पानी और मिट्टी की गुणवत्ता का परीक्षण करें।
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क्या मछली पालन में मछलियों को रोग होते है?

हां, मछली पालन में मछलियां भी रोगग्रस्त हो सकती है। जब भी मछली किसी रोग से संक्रमित होती है तो उसके स्वभाव और शरीर में अंतर दिखाई देने लगते है। कई मछली प्रजातियां रोग से लड़ने में पूर्णतः सक्षम होती हैं।

रोगग्रस्त मछली के लक्षण क्या होते है?

(1) ₹ मछली समूह में नहीं रहती है और वह किनारे पर अलग से दिखाई देती है।

(2) रोगग्रस्त मछली अपने शरीर को तालाब के किनारों से रगड़ती हुई दिखती है।

(3) बीमार मछली पानी में बार-बार पानी को छलकाती रहती है।

(4) बीमार मछली कई बार हांफती हुई दिखाई देती है।

(5) बीमार मछली बहुत कम मात्रा में फीड खाती है और बीमार मछली कभी कभी बिल्कुल भी फीड नहीं खाती है।

(6) बीमार मछली के शरीर के रंग में बदलाव आ जाता है

(7) बीमार मछली के शरीर पर श्लैष्मिक द्रव के स्राव के कारण उसका शरीर चिपचिपा चिकना होने लगता है।

(8) परजीवी रोग या अन्य रोग के कारण मछली के शरीर तथा गलफड़ों में सूजन भी जाती है।

मछली में रोग क्यों होते है?

(1) पानी की गुणवत्ता, तापमान, पी.एच. ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड जैसे अन्य मापदंडों की असंतुलित मात्रा या तालाब में रासायनिक परिवर्तन होने के कारण मछली को कोई रोग हो सकता है।

(2) पानी के अत्यधिक अपशिष्ट पदार्थ एकत्रित हो जाने से भी मछली को रोग हो सकता है।

(3) अत्यधिक फीड देने से तालाब में विषैली गैस उत्पन्न हो सकती है और यह भी मछली के लिए रोग का कारण बन सकती है।

(4) पानी में रहने वाले रोगजनक जीवाणु और विषाणु  प्रतिकूल परिस्थिति में मछलियों पर हमला कर देते है जिससे मछली रोग ग्रस्त हो जाती है।

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मछलियों में होने वाले मुख्य रोग:

1. ट्राइकोडिनोसिस

लक्षण: यह रोग ट्राइकोडीना नामक प्रोटोजोआ परजीवी के कारण होती है। यह परजीवी मछली के गलफड़ों व शरीर के बाह्य सतह पर रहता है और इससे संक्रमित मछली में शिथिलता वजन में कमी और मरणासन्न अवस्था भी आ जाती है। इससे संक्रमित मछली के गलफड़ों से अधिक श्लेष्म प्रभावित हो जाता है जिससे उसे श्वास लेने में भी कठिनाई होती है।

उपचार:

  • 1.5 प्रतिशत सामान्य नमक घोल में संक्रमित मछली को 1 से 2 मिनट डुबोकर रखा जा सकता है।
  • 25 पी.पी.एम. फार्मेलिन संक्रमित मछली को 1 से 2 मिनट डुबोकर रखा जा सकता है।
  • 10 पी.पी.एम. कॉपर सल्फेट (नीला थोथा) घोल संक्रमित मछली को 1 से 2 मिनट डुबोकर रखा जा सकता है।

2. सफेद धब्बेदार रोग

लक्षण: यह रोग प्रोटोजोवा परजीवी इकथायोप्रथ्रीस मल्टीफीलीस के संक्रमण के कारण होता है और इसमें मछली की त्वचा व गलफड़ों पर छोटे-छोटे सफेद दाग होने लगते है। इससे संक्रमित मछली सुस्त भी हो जाती है।

उपचार:

  • संक्रमित मछली को 10 से 15 पी.पी.एम फोर्मलिन में 30 मिनट तक ऑक्सीजन की प्रवाह में रखना चाहिए।
  • रोगग्रस्त तालाब को 0.1 पी.पी.एम पोटेशियम परमैंगनेट से विषाणु मुक्त करना चाहिए, ऐसा करके भी बीमारी का रोकथाम किया जा सकता है।

3. माइक्रो एवं मिक्सोस्पोरीडिएसिस

लक्षण: माइक्रोस्पोरीडिएसिस रोग फिंगर्लिंग्स में अधिक होता है और यह मछली कोशिकाओं में तन्तुमय कृमिकोष बनाकर वास करते है। यह मछली की उत्तकों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं और मिक्सोस्पोरीडिएसिस रोग मछली के गलफड़ों व उसकी त्वचा को संक्रमित करता है।

उपचार: इस रोग का रोकथाम करने के लिए अब तक कोई उपचार पूर्ण रूप से लाभकारी सिद्ध नहीं हुआ है। इस रोग से संक्रमित मछली को तालाब से बाहर निकाल देते हैं।

4. डैक्टाइलों गाइरोसिस व गाइरो डे टाइलोसिस

लक्षण: यह रोग कार्प मछलियों के लिए अधिक घातक होता हैं। डेक्टाइलोगायरस सीधे मछली के गलफड़ों को संक्रमित करता है इससे मछली का शरीर बदरंग दिखाई देने लगता है और उसकी वृद्धि भी धीरे होती है। गाइरोडेक्टाइलस मछली की त्वचा के संक्रमित भाग की कोशिकाओं में घाव बनाता है और इससे मछली के शल्क गिरने लगते है।

उपचार:

  1. संक्रमित मछली को 1 पी.पी.एम. पोटेशियम परमैंगनेट के घोल में 30 मिनट तक रखना चाहिए।
  2. 1:2000 का एसिटिक एसिड के घोल और 2 प्रतिशत नमक के घोल में संक्रमित मछली को बारी-बारी से 2 मिनट तक डुबोकर रखना चाहिए।
  3. तालाब में मेलाथियान का 0.25 पी.पी.एम. सात दिन के अंतराल में तीन बार छिड़काव करना चाहिए।

5. आरगुलौसिस

लक्षण: यह रोग अरगुलस परजीवी से होता है और यह मछली की त्वचा पर गहरे घाव कर देता हैं। इस रोग से संक्रमित मछली की त्वचा पर फफूंद व जीवाणु आक्रमण कर देते हैं और मछलियां धीरे धीरे मरने लगती है।

उपचार:

1. संक्रमित मछली को 500 पी.पी.एम.पोटेशियम परमैंगनेट के घोल में 1 मिनट के लिए डुबोकर रखना चाहिए।2. 0.25 पी.पी.एम. मेलेथियाँरन का उपयोग 1-2 सप्ताह के अंतराल में 3 बार करना चाहिए।

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