प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जो बढ़ने का रखती है दम, जान लें ऐसी देसी मछली के बारे में, पालन कर कमाएं मुनाफा

प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जो बढ़ने का रखती है दम, जान लें ऐसी देसी मछली के बारे में, पालन कर कमाएं मुनाफा

मछली पालन भारत समेत अन्य देशों में हमेशा से ही किया जाता रहा है। माना जाता है कि धरती पर मानव जीवन की शुरूआत में या जंगलों और नदी-तालाबों के किनारे विपरीत परिस्थितियों में जीवन गुजारने वाले लोग मछली सेवन कर अपना जीवन निर्वाह करते थे। आज भी पूरी दुनिया में आबादी का एक बड़ा हिस्सा मछली का सेवन बड़े चाव से करता है। ऐसे में मछली पालन का व्यवसाय अगर सही तरीके से किया जाए तो यह एक मुनाफे वाला व्यवसाय साबित हो सकता है।

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मछली पालन के लिए अगर आप विदेशी मछलियों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं तो आज हम आपको एक बेहद लाभदायक देसी मछली के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसका पालन कर आप मछली पालन के व्यवसाय में तरक्की की सीढ़ियां चढ़ सकते हैं। चूंकि मछली पालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें मछलियों के पालन हेतु उनका रखरखाव करने के लिए मछली पालक को काफी मेहनत करनी पड़ती है। मछलियों की उचित वृद्धि ना होना भी कई बार मछली पालक के लिए परेशानी का सबब बन जाता है। वहीं मछलियों में होने वाली बीमारियां भी मछली पालक के लिए व्यवसाय में मुश्किलें खड़ी करती रहती हैं।

ऐसे में आज हम आपको एक ऐसी देसी मछली के बारे में बताने जा रहे हैं जोकि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी बढ़ने का दम रखती है। जी हां देसी मांगुर मछली एक ऐसी मछली है जोकि विपरीत परिस्थितियों में आसानी से बढ़ती है। तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं इसी देसी मांगुर मछली के बारे में और इसके पालन के बारे में संपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं।

जानिए देसी मांगुर मछली पालन के फायदे

1-उथले, दलदली, कम पानी तथा प्रतिकूल पर्यावरणीय स्थिति में भी बढने की क्षमता।

2-कम घुलित ऑक्सीजन वाले जल क्षेत्र में भी पालन संभव।

3- बाजार में मांग अधिक, कार्प मछलियों की तुलना में बाजार मूल्य दर अधिक है।

4- सरल मछली प्रबंधन व अपेक्षाकृत कम लागत।

देसी मांगुर 10 से 12 महीनों बाद लगभग 100 से 150 ग्राम की हो जाती है। मछलियों की अन्य प्रजातियों की तुलना मांगुर के बाजार में अच्छे दाम मिलते हैं। इसे यदि फुटकर भाव में बेचा जाए तो यह 500 से 600 रूपए किलो बिकती है। एक हेक्टर तालाब से लगभग 2 से 3 टन मांगुर मछलियों का उत्पादन होता है। जिससे मछली पालक 8 लाख 30 हजार रूपए का शुद्ध मुनाफा पा सकते हैं। वहीं इसमें खर्च लगभग 5 लाख 45 हजार रूपए का आता है।

जानिए किस तरह करें तालाब का निर्माण

तालाब निर्माण के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। ध्यान रहे तालाब निर्माण के पहले मिट्टी का परीक्षण जरूर करवा लेना चाहिए। वहीं मिट्टी का क्षारीय और अम्लीय पीएचमान 7 से 8 तक होना चाहिए। जगह का चुनाव करते हुए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि तालाब तक पहुंचने के आवागमन की बेहतर सुविधा हो तथा तालाब पर बाढ़ का प्रकोप न पड़े। साथ ही पानी के पर्याप्त साधन होना चाहिए ताकि तालाब को खाली और भरा जा सके।

तालाब का निर्माण आयताकार होना चाहिए। वहीं तालाब से अवांछित मछलियों को मारने के लिए प्रति हेक्टेयर 2500 किलोग्राम महुआ की खली डालनी चाहिए। वहीं तालाब को कीटाणु रहित बनाने के लिए समय-समय पर तालाब में चूना डालना चाहिए।

तालाब में भरे जाने वाला पानी गुणवत्तापूर्ण होना चाहिए। इसके लिए पानी का पीएचमान 7 से 8.5 तक उपयुक्त माना जाता है। वहीं तापमान 27 से 31 डिग्री एवं पारदर्शिता 35 से 40 सेंटीमीटर होना चाहिए। पानी में घुलित आक्सीजन की मात्रा 5 से 7 मि.ग्रा. प्रति लीटर उत्तम होती है, जबकि पानी की गहराई 0.75 से 1 मीटर तक उपयुक्त होती है।

देसी मांगुर मछली के लिए इस तरह करें आहार का प्रबंध

सामान्यत: मांगुर मछलियाँ मांसाहारी होती है। पालन प्रणाली में पूरक आहार हेतु इन्हें सूखी हुई मछलियां, मछलियों का चूरा, सरसों की खली, चावल का कना आदि दिया जाता है। ये सूक्ष्म केंकड़ा वंशी प्रणालियों, कीट-पतंगों तथा अन्य प्रकार के लार्वा भी खाती हैं। सूखी मछलियों में 30 से 32 प्रतिशत प्रोटीन होता है, जो मांगुर के विकास के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।

बाजरा में उपलब्ध मांगुर आहार भी उपयोग किए जा सकते हैं। यह आहार पानी में स्थिर रहने वाला, मांगुर के लिए संतुलित तथा जल को प्रदूषित न करने वाला होना चाहिए। शिशुओं को आहार दिन में दो बार, शरीर के भार का 3 से 5 प्रतिशत दिया जाता है।

यहां से मंगाएं देसी मांगुर मछली के बीज

मांगुर का बीज पश्चिम बंगाल, बिहार और असम राज्य से आसानी से मंगाया जा सकता है। इसके शिशु को पानी के छोटे गड्ढों और तालाबों में आसानी से प्राप्त किया जाता है। जब मांगुर शिशु 8 से 10 दिनों बाद 3 से 5 ग्राम के हो जाए तब इन्हें तालाब में स्थानांतरित कर देना चाहिए। प्रति हेक्टेयर आकार के तालाब में 50 से 70 हजार मांगुर शिशुओं की आवश्यकता पड़ती है।

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