पशु में ये लक्षण दिखते ही हो जाएं सावधान, पाचन संबंधी बीमारियों से आपका पशु हो सकता है बेहाल

एक स्वस्थ पशु की निशानी है उसका स्वस्थ पाचन तंत्र। जैसे इंसानों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए स्वस्थ पाचन तंत्र बेहद आवश्यक है ठीक उसी तरह पशुओं के बेहतर स्वास्थय के लिए उनका पाचन तंत्र भी ठीक होना अति आवश्यक है। पाचन संबंधी बीमारियां होने पर पशु की उत्पादन क्षमता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। चूंकि कई बार बाहरी रूप से इसके लक्षण दिखाई नहीं देते ऐसे में पशुपालक को यह जानकारी नहीं हो पाती है कि उसके पशु का पाचन तंत्र ठीक से काम कर रहा है या नहीं।
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ऐसे में धीरे-धीरे उसका पशु और बीमार होने लगता है और पशुपालक को पशुपालन के व्यवसाय में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। चूंकि पशु जो भी खाता है जब तक उसमें मिले सारे पोषक तत्व ठीक तरह से पशु के शरीर में अवशोषित नहींं होते तब तक पशु को उस पोषक आहार का पूरा लाभ नहीं मिल पाता है।
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ऐसे में अगर आप भी एक पशुपालक हैं तो आपको पशुओं में पाचन संबंधी बीमारियों के लक्षण और उनके उपचार के बारे में जानकारी होनी चाहिए। तो आज हम आपको पशुओं में पाचन संबंधी बीमारियों की पहचान और उनके उपाय बताने जा रहे हैं।
जान लें पशुओं में पाचन संबंधी बीमारियों के कारण और उपचार

1- चारा खाने में रुचि ना लेना
पशुओं का पाचन तंत्र ठीक से काम नहीं कर रहा है इसका एक अहम संकेत है कि ऐसा होने पर पशु अपने भोजन में रुचि लेना बंद कर देते हैं।
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कारण:
1- पशु के पेट में कीड़े होना।
2- शरीर के किसी अन्य भाग में बीमारी होना, जैसे- निमोनिया, बच्चेदानी का संक्रमण आदि।
3- पशु की जाड़ बढ़ना।
4- पशु के खून में संक्रमण होना, जैसे- सर्रा आदि।

उपचार:
1- पशु चिकित्सक द्वारा पशु की जांच करवाना एवं कारण का पता लगा कर उचित इलाज करवाना चाहिए।
2- पशु को साल में दो बार पेट के कीड़ों की दवाई देनी चाहिए।
3- पशुओं को गलघोंटू व मुॅंह-खुर के टीके समय पर लगवाना चाहिए।
4- अगर पशु के मुँह में खाना इकट्ठा होता हो तो उसमें जाड़ों की समस्या हो सकती है। पशु को अस्पताल में ले जाकर माऊथ-गैग लगवाकर उसके दाँतों व जाड़ों की अच्छी तरह जाँच करनी चाहिए व बढ़ी हुई जाड़ों को घिसवा कर ठीक करवाना चाहिए।

2. पशु के मुँह से चारा गिरना:
कारण:
1- पशु की भोजन नली का किसी कपड़े पालीथीन, गाजर, आदि से अवरूद्ध होना।
2- पशु में लकवा नामक बीमारी होना।
3- पशु का अत्याधिक अनाज खाना।
4- पशु में दाँतों का बढ़ना।
5- मुंह-खुर बीमारी से ग्रसित होना।
6- पशु के पेट में फोड़ा होना
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उपचार:
(क) पशु चिकित्सक द्वारा बीमारी का उचित कारण पता लगाया जाना चाहिए। इसके लिए पशु के मुँह व गर्दन का एक्सरे करवाया जाना चाहिए।
(ख) कई बीमारियों में ऑपरेशन ही एकमात्र इलाज होता है।
ऑपरेशन के बाद सर्जन की सलाह अनुसार ही पशु का खानपान व देखभाल करनी चाहिए।

3. पाईका
इस बीमारी में पशु कपड़े, बाल, पालीथीन, गोबर, मिट्टी आदि खाने लग जाते हैं।
कारण-
पशु के शरीर में फास्फोरस की कमी हो जाना।
उपचार-
1- पशु चिकित्सक की सलाह लेकर पशु को फास्फोरस के इंजेक्शन लगवाए जाने चाहिए।

4. दस्त लगना-
अधिक मात्रा में बार-बार पतला गोबर करना।
प्रमुख लक्षण:
1- गोबर के साथ खून व आँतों के अंदर की परत (Mucus membrane) का आना।
2- पशु का कमजोर होना, आंखे अंदर धंसना, त्वचा का रूखापन व शरीर में पानी की कमी होना।
3- कई बार पशु ज्यादा कमजोरी के कारण उठ भी नहीं पाते और उचित इलाज के अभाव में मर जाते हैं।
कारण:
1- पशु के पेट व आंतों में कीड़े होना।
2- आंतों में कीटाणु या विषाणुओं का संक्रमण होना जैसे आंतों की टी.बी.।
3- अत्याधिक अनाज खा जाना।
4- पशु के चारे या बाखर में अचानक बदलाव करना।
उपचार:
1- पशु को नस में गलूकोज लगवाना चाहिए।
2- यदि पशु अचानक अत्याधिक दलिया या अनाज खा जाए, तो तुरंत पशु चिकित्सक को बलुाना चाहिए। कई बार पशु की जान बचाने के लिए आपातकालीन पेट का आपरेशन ही अंतिम उपाय होता है।
3- पशु के चारे में धीरे-धीरे एवं कम से कम 20 दिन में बदलाव करना चाहिए।

5. पशुओं में गोबर का बंधा पड़ना
लक्षण:
1- पशु का कम मात्रा में या बिल्कुल भी गोबर न करना।
2- पशु के पेट का फूलना।
3- काले रंग का गोबर आना तथा उसमें अत्याधिक मात्रा में जाले से दिखाई देना।
4- पशु द्वारा चरना कम कर देना व धीरे-धीरे छोड़ देना।
कारण:
1- पशु के पाचन तंत्र का कपड़े, बाल, पालीथीन आदि से अवरूद्ध हो जाना।
2- पशु के पेट व आंतों की कीटाणुओं के संक्रमण के कारण जुड़ जाना।
3- पशु की आंतड़ियों का एक दूसरे में घुस जाना।
4- पशु द्वारा अधिक मात्रा में नया तूड़ा खा जाना।
5- पशु के पेट में कीड़े होना।
6- छोटे कणों में पेशाब रूकना।
उपचार:
1- कीटाणुओं के संक्रमण को खत्म करने के लिए एंटीबायोटिक के इंजैक्षन लगवाने चाहिए।
2- नया तूड़ा छान कर व कम मात्रा में पशु को खिलाना चाहिए।
3- दवाईयों द्वारा ठीक ना होने पर पशु को आपरेशन द्वारा इलाज करवाया जाना चाहिए एवं सर्जन की सलाह अनुसार ही पशु का रखरखाव करना चाहिए।
4- छोटे कणों में जब पेशाब रूक जाता है, तब गोबर भी रूक जाता है। आपरेशन करवाने के बाद गोबर की समस्या अपने आप ठीक हो जाती है।

6. अफारा आना:
लक्षण:
1- पशु के पेट का बांई तरफ से असामान्य रूप से फूल जाना।
2- पशु का मुँह खोल कर सांस लेना।
कारण:
1- पशु के पेट में कील, सूंई आदि चुभी होना।
2- पशु के शरीर में कीटाणुओं का संक्रमण होना।
3- भोजन नली का अवरूद्ध होना।
4- छाती का पर्दा फटा होना।
5- पशु द्वारा अत्याधिक अनाज, आटा आदि खाना।
उपचार:
यदि कई दिनों से लगातार अफारा चल रहा है तो पशु का एक्सरे करवाना चाहिए। इसके बाद आपरेशन द्वारा पेट में चुभे कील सूंई, तार, एवं अन्य वस्तुएँ जैसे पॉलिथीन, कपड़े आदि निकाल दिए जाते हैं और पशु धीरे-धीरे स्वस्थ हो जाता है।
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