तिलापिया मछली में होने वाले रोग व उनका उपचार

तिलापिया मछली हमारे देश में दूसरी सबसे अधिक पालन की जाने वाली मछली है। तिलापिया मछली का पालन करते समय कभी कभी तिलापिया रोग ग्रस्त हो जाती है और रोग ग्रस्त होने की वजह से धीरे-धीरे तिलापिया मछली की मृत्यु होने लगती है। तिलापिया मछली को रोग बैक्टीरिया, कवक, वायरस और परजीवियों के कारण हो सकते है। कई बार तिलापिया मछली अधिक जल प्रदूषण, अधिक वायु प्रदूषण व संपूर्ण पोषण न मिलने के कारण भी रोग हो जाते है।

तिलापिया मछली में होने वाले रोग व उनका उपचार

तिलापिया में परजीवियों के कारण होने वाले मुख्य रोग:

1) आइसोपॉड संक्रमण के लक्षण: यदि तिलापिया इस रोग से संक्रमित होती है तो तिलापिया आपको गलत तैराकी करती हुई और पानी की सतह पर बार-बार ऊपर आती हुई दिखाई देती है। आइसोपॉड  संक्रमण का उपचार: सप्ताह में 1 बार ट्राइक्लोरफॉन में मछली को डुबो कर रखना चाहिए और इस प्रक्रिया को 3-4 सप्ताह तक करना चाहिए।

2) मोनोजेनियन संक्रमण के लक्षण: जब तिलापिया इस रोग से संक्रमित होती है तब उसके गलफड़ों में सूजन आ जाती है, यह सतह के आस पास तैरती है और कम फीडग्रहण करने लगती है। मोनोजेनियन संक्रमण का उपचार: हाइड्रोजन पेरोक्साइड का उपयोग करने से इस रोग को हटाया जा सकता है। इसके लिए आपको 300560 मिलीग्राम हाइड्रोजन पेरॉक्साइड की जरूरत पड़ेगी,  10 मिनट तक मछली को डोबोकर रखना चाहिए।

3) ट्राइकोडिना संक्रमण के लक्षण: जब तिलापिया मछली इस रोग से संक्रमित होती है तब यह कम फीड ग्रहण करती है, गलत तैराकी करती है और बार बार अपने शरीर को तालाब की दीवारों से रगड़ती है।                                                                                                                   ट्राइकोडिना संक्रमण का उपचार: इसका उपचार करने के लिए आपको 170-250 ppm फोर्मलिन की आवश्यकता पड़ेगी, 60 मिनट तक मछली को इसमे डुबो कर रखना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो इस उपचार को आप दोहरा सकते है।

तिलपिया में बैक्टीरिया के कारण होने वाले रोग:

1) स्तंभकार संक्रमण के लक्षण: इस रोग से संक्रमित मछली के गलफड़े और पंख का रंग पीला पड़ जाता है, मछली हांफने लगती है और धीरे धीरे मछली के गलफड़े सड़ने लगते है।         स्तंभकार संक्रमण का उपचार: इसका उपचार आप नाइट्रोफुरेजोन और केनामाइसिन एंटीबायोटिक दवा का उपयोग करके कर सकते है।

2) ऐरोमोन्स संक्रमण के लक्षण: इस रोग से संक्रमित मछली के शरीर पर लाल धब्बे हो जाते है और मछली के कुछ आंतरिक अंगों के रक्तस्राव भी  हो जाता है।                                         ऐरोमोन्स संक्रमण का उपचार: लगातार 10 दिनों तक मछली के फीड में 2 से 4 ग्राम ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन को मिलाकर देना चाहिए या फिर 3 दिनों तक लगातार 264 mg सुल्फमेराज़ीन फीड में मिलाकर देना चाहिए।

3) इरिडोविरोसिस (गिल नेक्रोसिस संक्रमण): इस रोग से संक्रमित मछली के शरीर पर हरे और पीले रंग की फुंसिया उठने लगती है और मछली के  गलफड़ों पर पीले धब्बे होने लगते है।इरिडोविरोसिस (गिल नेक्रोसिस संक्रमण) का उपचार: इस रोग का उपचार करने के लिए आप ऑक्सी टेट्रासाइक्लिन एंटीबायोटिक दवा का 5 से 14 दिनों तक प्रयोग कर सकते है।