कम पानी और कम खर्च में करें अधिक से अधिक मछली उत्पादन, जानिए मछली पालन की बायोफ्लॉक तकनीक के बारे में

कम पानी और कम खर्च में करें अधिक से अधिक मछली उत्पादन, जानिए मछली पालन की बायोफ्लॉक तकनीक के बारे में

भारत समेत अन्य देशों में भी मछली पालन का व्यवसाय बड़े से छोटे स्तर तक किया जाता है। अगर आप स्वरोजगार अपनाना चाहते हैं तो मछली पालन का व्यवसाय कर आप इससे अच्छी-खासी आमदनी कर सकते हैं। मछली पालन करने से पहले उसे करने के विभिन्न तरीकों के बारे में जान लेना आवश्यक रहता है। मछली पालन का एक तरीका है तालाब का निर्माण कर उसमें मछली पालन करना। लेकिन मछली पालन की बायोफ्लॉक तकनीक अपनाकर आप इस व्यवसाय को अधिक आसानी से कर सकते हैं।

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बायोफ्लॉक तकनीक में आप बिना तालाब के एक टंकी या टैंक के अंदर मछली पालन करते हैं। बायोफ्लॉक तकनीक मछली पालन का एक आधुनिक और वैज्ञानिक तरीका है। इसमें टैंक सिस्टम अपनाते हुए उसके अंदर वैक्टीरिया की मदद से मछलियों के मल और अतिरिक्त पद्धार्थों को प्रोटीन सेल में परिवर्तित कर दिया जाता है। जोकि टैंक के भीतर मौजूद मछलियों के खाने के काम आता है।

इस तकनीक में आप कम पानी और कम खर्च में अधिक से अधिक मछलियों का उत्पादन कर सकते हैं। जिसके फलस्वरूप आप कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। बायोफ्लॉक तकनीक में टैंक के अंदर एक साथ कई नस्लों की मछलियों का पालन किया जा सकता है।

जानिए बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन के बारे में

बायोफ्लॉक तकनीक, तालाब तकनीक के मुकाबले सस्ती और लाभप्रद है। तालाब तकनीक में जहां बड़ी जमीन और कच्चे तालाब की आवश्यकता होती है। वहीं बायोफ्लॉक तकनीक में पानी का टैंक बनाकर मछली पालन किया जा सकता है। बायोफ्लॉक तकनीक में सीमेंट टैंक/ तारपोलिन टैंक, एयरेशन सिस्टम, विधुत उपलब्धता, प्रोबायोटिक्स, मत्स्य बीज की आवश्यकता होती है।

तालाब में सघन मछली पालन नहीं हो सकता क्योंकि ज्यादा मछली डालने पर तालाब का अमोनिया बढ़ जाता है और तालाब गंदा होने पर मछलियां मर जाती हैं। मछली पालकों को तालाब की हर समय निगरानी रखनी पड़ती है क्योंकि मछलियों को सांप और बगुला खा जाते हैं। जबकि बायोफ्लॉक वाले जार के ऊपर शेड लगाया जाता है।

इससे मछलियां मरती भी नहीं है और किसान को नुकसान भी नहीं होता है। एक हेक्टेयर के तालाब में हर समय एक दो इंच के बोरिंग से पानी दिया जाता है जबकि बायो फ्लॉक विधि में चार महीने में केवल एक ही बार पानी भरा जाता है। गंदगी जमा होने पर केवल दस प्रतिशत पानी निकालकर इसे साफ रखा जा सकता है। टैंक से निकले हुए पानी को खेतों में छोड़ा जा सकता है।

जानिए बायोफ्लॉक तकनीक में टैंक निर्माण में आ सकता है कितना खर्चा

बायो फ्लॉक तकनीक में एक टैंक को बनाने में कितनी लागत आएगी वो टैंक के साइज के ऊपर होता है। टैंक का साइज जितना बड़ा होगा मछली की ग्रोथ उतनी ही अच्छी होगी और आमदनी भी उतनी अच्छी होगी। इस उद्योग से जुड़े लोगों के अनुसार एक टैंक को बनाने में 28 से 30 हजार रुपए का खर्चा आता है जिसमें उपकरण और लेबर चार्ज शामिल है। टैंक को साइज जितना बढ़ेगा कॉस्ट बढ़ती चली जाएगी।

इस तकनीकी से 10 हजार लीटर क्षमता के टैंक (एक बार की लागत 32 हजार रुपये, 5 वर्ष हेतु) से लगभग छः माह (पालन लागत 24 हजार रुपये) में विक्रय योग्य 3.4 किंवटल मछली (मूल्य 40 हजार) का उत्पादन कर अतरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है। इस तरह वार्षिक शुद्ध लाभ रु. 25 हजार एक टैंक से प्राप्त किया जा सकता है। यदि मंहगी मछलियों का उत्पादन किया जाये तो यह लाभ 4.5 गुना अधिक हो सकता है।

बायोफ्लॉक तकनीक से आप टैंक में पंगेसियस, तिलापिया, देशी मांगुर, सिंघी, कोई कार्प, पाब्दा, एवं कॉमन कार्प आदि नस्लों की मछलियों का पालन आसानी से कर सकते हैं।

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