इन बातों पर दिया ध्यान, तो डेयरी व्यवसाय में बना पाएंगे अपनी पहचान, जान लीजिए सफलता के तीन मुख्य मूल मंत्र

पशु की नस्ल, पशु प्रबंधन एवं पशु पोषण, डेयरी व्यवसाय करने वालों के लिए ये तीनों कारक सफलता के तीन मुख्य मूल मंत्र साबित हो सकते हैं। चूंकि किसी भी डेयरी फार्म की सफलता दुग्ध उत्पादन पर निर्भर करती है और बेहतर दुग्ध उत्पादन के लिए पशु का पूरी तरह स्वस्थ होना बेहद आवश्यक है और एक स्वस्थ पशु के लिए उचित पोषण बेहद जरूरी है।
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ऐसे में अगर आप भी डेयरी फार्म खोलकर इससे मुनाफा कमाना चाहते हैं तो आपको इन तीन मुख्य कारकों पशु की नस्ल, पशु पोषण और पशु प्रबंधन का खास ध्यान रखना होगा। आज हम डेयरी व्यवसाय के अंतर्गत आने वाले इन तीन मुख्य कारकों के बारे में आपको अवगत कराएंगे।

जान लीजिए गाय की अच्छी नस्लों के बारे में
अगर गाय के बारे में बात करें तो ये मुख्यता दो प्रकार की होती हैं।
1- देसी गाय
2- जर्सी गाय

आइये जान लेते हैं देसी गाय की कुछ प्रमुख नस्लें
गिर, साहीवाल, राठी, हल्लीकर, हरियाणवी, कांकरेज, लाल सिंधी, कृष्णा वैली, नागोरी, खिल्लारी। भारत के अलग-अलग राज्यों में उपरोक्त नस्लों की गाय दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से बेहतर मानी जाती हैं।
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देसी गाय के अलावा दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से कुछ अन्य भी गाय की नस्लें हैं जिनके बारे में आपको जानकारी होनी चाहिए।

1- होल्सटीन फ्रीसिएन गाय
इस गाय को आमतौर पर HF नाम से भी जाना जाता है। इसे दुनिया में सबसे अधिक दूध देने वाली गाय माना जाता है। बड़ा शरीर, काले व सफ़ेद रंग की त्वचा इसकी प्रमुख पहचान है। एचएफ गाय का दूध उत्पादन 15-40 लीटर प्रतिदिन होता है। इसके दूध में फैट की मात्रा सिर्फ 3.5% होती है। एक अच्छी HF गाय लगभग 40-60 हज़ार रुपये में मिलती है।

2- जर्सी नस्ल की गाय
जर्सी गाय कॉमर्शियल डेयरी फार्मिंग के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है। यह गाय इंग्लैंड में उत्पन्न हुई है। भूरे तथा लाल रंग की त्वचा, चौड़ा माथा, बड़ी आँखे आदि इसकी प्रमुख पहचान है। जर्सी गाय 400-450 किलोग्राम वजन की होती है। मध्यम आकार के शरीर वाली यह गाय भारत के लगभग सभी मौसमों में सामंजस्य स्थापित कर लेती है। इस गाय की रोग प्रतिरोध क्षमता भी अच्छी होती है और यह HF नस्ल की तुलना में अधिक तापमान सहन कर लेती है।

पशु प्रबंधन
डेयरी फार्मिंग के लिए पशुओं की आवास प्रबंधन की बात करें तो इसके लिए आपको कुछ प्रमुख बिंदुओं का ध्यान रखना होता है जोकि निम्न लिखित हैं।
- आवास तीन हिस्सों में बंटा होना चाहिए।
- एक जगह पर पशुओं को रखा जाना चाहिए, दूसरे स्थान पर दूध निकाला जाना चाहिए और तीसरा स्थान दाना-पानी, भूसा और दूध निकालने के बर्तन आदि रखने के लिए निर्धारित होना चाहिए।
- बीमार पशुओं को अलग स्थान पर रखना चाहिए।
- आवास स्थल का तापमान 25-27 डिग्री के मध्य होना चाहिए।
- पशुओं में पर्याप्त दूरी होनी चाहिए।
- नांद या चरनी पशुओं से उचित दूरी पर होनी चाहिए।
- आवास की ऊंचाई का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए।
- पशुओं के आवास की रोज़ाना साफ-सफाई होनी चाहिए।

पशु पोषण के लिए जरूरी है संतुलित पशु आहार
- वैज्ञानिक दृष्टि से दुधारू पशुओं के शरीर के भार के अनुसार उसकी आवश्यकताओं जैसे जीवन निर्वाह, विकास तथा उत्पादन आदि के लिए भोजन के विभिन्न तत्व जैसे प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट्स, वसा, खनिज, विटामिन तथा पानी की आवश्यकता होती है। पशु को 24 घण्टों में खिलाया जाने वाला आहार (दाना व चारा) जिसमें उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतू भोज्य तत्व मौजूद हों, पशु आहार कहते है। जिस आहार में पशु के सभी आवश्यक पोषक तत्व उचित अनुपात तथा मात्रा में उपलब्ध हों, उसे संतुलित आहार कहते हैं।

- पशुओं में आहार की मात्रा उसकी उत्पादकता तथा प्रजनन की अवस्था पर निर्भर करती है। पशु को कुल आहार का 2/3 भाग मोटे चारे से तथा 1/3 भग दाने के मिश्रण द्वारा मिलाना चाहिए। मोटे चारे में दलहनी तथा गैर दलहनी चारे का मिश्रण दिया जा सकता है। दलहनी चारे की मात्रा आहार में बढने से काफी हद तक दाने की मात्रा को कम किया जा सकता है।
- पशु के आहार की मात्रा का निर्धारण उसके शरीर की आवश्यकता व कार्य के अनुरूप तथा उपलब्ध भोज्य पदार्थों में पाए जाने वाले पोषक तत्वों के आधार पर गणना करके किया जाता है।

किसी भी पशु के लिए पशु पोषण बेहद आवश्यक है। अगर आप चाहते हैं कि आपके पशु की दुग्ध उत्पादन क्षमता बेहतर होने के साथ-साथ बढ़ती रहे तो इसके लिए पशु को संतुलित पोषक पशु आहार देना होगा। पशुओं के उचित पोषण के लिए संतुलित पशु आहार के साथ-साथ पशुओं को कैल्शियम और प्रोटीन सप्लीमेंट्स खिलाने पर पशु की सेहत बेहतर रहती है।
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