मछली पालन के व्यवसाय में नहीं मिलेगी मात, जान लें उनमें होने वाली बीमारियां और उनके उपचार

मछली पालन के व्यवसाय में लोगों की रुचि हमेशा से रही है। तेजी से बदलते भारत में आत्मनिर्भर बनने की ललक में आजकल काफी संख्या में लोग इस व्यवसाय में अपना हाथ आजमा रहे हैं। मछली पालन करने से पहले आपको मछलियों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी जुटा लेनी चाहिए। जैसे कि मछलियोंं के प्रकार, मछलियों में कौन-कौन सी बीमारियां होने की संभावना रहती है आदि।

चूंकि मछली पालन के व्यवसाय में मछली एक अहम भूमिका निभाती है ऐसे में उनमें होने वाली बीमारियां आपको व्यवसाय में मुनाफे की जगह घाटे से रूबरू करवा सकती है। ऐसे में आज हम आपको मछलियों में होने वाली कुछ प्रमुख बीमारियों एवं उनके उपचार के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें जानकर आप पहले से अधिक बेहतर तरीके से मछली पालन का व्यवसाय कर सकेंगे।
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जान लें मछलियों में होने वाली कुछ प्रमुख बीमारियां और उनके उपचार

लार्निया
इस बीमारी से यह कीट मछली के शरीर से चिपक जाती है और मछली के शरीर पर घाव बना देता है। तालाब में पोटैशियम परमैगनेट का प्रयोग करने से यह बीमारी समाप्त हो जाती है।

गिलरॉट
इस बीमारी में मछलियों के गिल/गलफड़े सड़ जाते हैं। बीमार मछलियों को तालाब से बाहर निकाल दें। मछलियों का भोजन बंद कर दें। तालाब में ताजा पानी भरवायें। बीमार मछलियों को एटीब्राइन घोन में नहलाना चाहिए।

फफूंद
अगर मछलियों के शरीर पर कोई चोट या रगड़ लग जाती है तो उस पर रुई की तरह फफूंद लग जाती है जिससे मछलियां सुस्त होकर पानी की सतह पर आ जाती हैं। बीमार मछली को 5 से 10 मिनट तक नमक कर घोल, नीला थोथा का घोल और पोटेशियम परमैग्नेट के घोल से नहलायें।

आंखों की बीमारी
इस बीमारी में मछलियों की आंखे खराब हो जाती है। बीमार मछलियों की आंखों में 1 से 2 प्रतिशत सिल्वर नाइट्रेट के घोल से धोकर मछली को तालाब में छोड़ दें।

ड्रॉप्सी
इस बीमारी में मछली के किसी भी अंग में पानी सा भर जाता है। ऐसी बीमार मछलियों को तालाब से बाहर निकाल देना चाहिए।

आर्गुलस
इस बीमारी में मछली के शरीर पर चपटी जूं हो जाती है। 02 प्रतिशत माइसौल के घोल में 10 से 15 सेकेंड तक मछली को नहलाने से जूं समाप्त हो जाती है।

फिनराट
इस बीमारी में मछलियों के पंख गल जाते हैं। बीमार मछलियों को नीला थोथा के घोल में एक- दो मिनट तक नहलायें।
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